मस्जिदों का शिक्षा के केंद्र के रूप में विकास मौलाना मेराज अहमद क़मर

विश्व की ही तरह भारत में भी मस्जिदें ऐतिहासिक रूप से इस्लामी शिक्षा और सशक्तीकरण का केंद्र रही है। मस्जिदे, हमेशा से धर्म , अर्थव्यवस्था और सामाजिक संस्कृति से संबंधित मुद्दों पर चर्चा का एक माध्यम भी हैं। इसके उपयोग से मुसलमानों के जीवन में आमूल चूल परिवर्तन किया जा सकता है। मस्जिदों से लोगों को जीवन भर भाईचारे के मूल्यों को सिखाया जा रहा है।

भारत में अधिकांश मुसलमान गरीब होने के साथ साथ शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैंं । मस्जिदों के अच्छे इस्तेमाल से इनके विकास के कार्यों को अच्छे ढंग से किया जा सकता है। अनेक प्रकार की जरूरी योजनाओं और सेवा के लिए इन मस्जिदों का इस्तेमाल बड़ी आसानी से किया जा सकता है जैसे स्वास्थ्य शिविर, कौशल विकास केंद्र, समसामयिक विषयों पर जागरूकता जैसे कार्यक्रमों को बड़ी आसानी और प्रभावी तौर पर आयोजित किया जा सकता हैं। मुसलमानों में दीन के तहत दान, सामाजिक कल्याण व समुदाय की मदद करने की संस्कृति है। इसी वजह से मुस्लिमों में सामाजिक सेवा का भाव देखा गया है। लेकिन कभी कभार या यू कहें कि ज्यादातर मामलों में यह दुष्प्रचार का शिकार हो जाते हैं।

भारत में हेल्पिंग हैंड फाउंडेशन और सीड फाउंडेशन ने हैदराबाद में कुछ मस्जिदों में क्लीनिक, कौशल विकास केंद्र व वृद्धा आश्रम स्थापित किए हैं।इसके साथ ही कुछ प्रगतिशील मुस्लिमों ने महंगी शिक्षा व महंगी कोचिंग से वंचित मुसलमान छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए बेहतर सुविधाएं देना शुरू किया है। मस्जिदों का गैर औपचारिक शिक्षा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे कि प्रौद्योगिकी और विज्ञान की शिक्षा को इस्लामी शिक्षा के साथ मिला कर मुस्लिम नवयुवकों के जीवन को व्यापक रुप से सुधारा जा सकता है।

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