*हलाल प्रमाणन बहस में गैर एकरूपता* मौलाना मेराज अहमद क़मर

उर्दू खबरे

 

भारत में मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी जो कि कुल आबादी का लगभग 20% है,देश में सद्भावना के साथ रहती है। यहां ये बात गौर तलब है कि इंडोनेशिया के बाद भारत ही एक ऐसा देश है जहां मुसलमानों की आबादी सबसे ज्यादा है। इतनी बड़ी आबादी की जरूरतों में से एक जरूरत है हलाल प्रमाणित खाद्य पदार्थों की। हलाल एक अरबी शब्द है जिसका पारंपरिक इस्लामिक कानून में अर्थ होता है अनुमेय और यह भोजन, पेय, दवाओं आदि गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला से संबंधित है।प्राप्त सूचनाओं की मानें तो हलाल प्रमाणीकरण भारत में पहली बार 1974 में शुरू किया गया था जो कि मीट के लिए इस्तेमाल होता था। सन 1993 तक ये मीट के लिए ही प्रयोग किया जाता था पर इसके बाद इसका विस्तार अन्य उत्पादों के लिए भी किया जाने लगा।

सार्वभौमिक विषय में ‘हलाल’ जीवन का एक तरीका है जिसमें शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से लाभ शामिल है। वर्तमान समय भारत में हलाल प्रमाणन के लिए कोई केंद्रीय प्राधिकरण या मानक निर्धारण ऑथोरिटी नहीं है। कई निजी संस्थाएं अपने मानकों के आधार पर फौरी तौर पर हलाल प्रमाणन करती हैं जिसके कारण प्रमाणन में एकरूपता की कमी दिखती है। भारत में 5 से 6 संस्थाएं है जो कि सर्टिफिकेशन कार्य में है जिसमें जमात उलेमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट मुख्य रुप मुख्य रूप से है, लेकिन हलाल प्रमाणन के लिए किसी भी संस्था के पास वैज्ञानिक तरीके नहीं है। आज के समय में हलाल प्रमाणिकता में सरकार का कोई रोल नहीं है।

निर्माताओं के लिए हलाल प्रमाणीकरण तेजी से प्रमुख हो गया है वस्तुतः हलाल प्रमाणीकरण एक व्यापक बाजार तक पहुंच प्रदान करके व्यवसायों के लिए लाभदायक है। उपभोक्ता नैतिक या धार्मिक कार्यों से हलाल प्रमाणित उत्पादों की अपेक्षा करते हैं। लेकिन दुनिया भर के व्यवस्था में इसका दुरुपयोग बढ़ता जा रहा है। संभवत आने वाले कुछ समय में भारत सरकार के द्वारा एक अथॉरिटी का निर्माण किया जाएगा जो कि हलाल सर्टिफिकेशन के कार्य को भी देख सके और हलाल प्रमाणिकता में वैज्ञानिक और शुचिता पूर्ण तरीकों का प्रयोग करके एक उचित व्यवस्था प्रदान की जा सके इस निर्णय का स्वागत है परन्तु भारत सरकार को सर्टिफिकेशन अथारिटी का गठन करते समय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का विश्वास प्राप्त कर ही कोई निर्णय लेना चाहिए ताकि उसकी विश्वसनीयता बनी रहे क्योंकि यह बहुत ही संवेदनशील और देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक मूल भावना एवं आस्था से जुड़ा हुआ है।

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