बड़ा इमामबाड़ा में आयोजित ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड का राष्ट्रीय अधिवेशन

बड़ा इमामबाड़ा में आयोजित ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड का राष्ट्रीय अधिवेशन

बड़ा इमामबाड़ा में आयोजित ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड का राष्ट्रीय अधिवेशन

लखनऊ, 28 दिसंबर 2025 – लखनऊ के इतिहास और विरासत के प्रतीक बड़े इमामबाड़े में ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड का राष्ट्रीय अधिवेशन धूमधाम और गंभीर चर्चा के माहौल में आयोजित किया गया। देश के विभिन्न राज्यों से आए मौलानाओं, खतीबों, बुद्धिजीवियों तथा अंजुमनों के प्रतिनिधियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। कड़कड़ाती ठंड के बावजूद देर तक जारी इस आयोजन ने शिया समुदाय की जागरूकता, एकजुटता और सामाजिक सरोकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाया।

अधिवेशन की शुरुआत पवित्र कुरान की सूरह फातिहा की तिलावत से हुई। इसके बाद सूरह आल-इमरान की आयत नंबर 103 का पाठ किया गया, जिसमें यह संदेश दिया गया कि “अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकड़े रहो और आपस में मत बंटो।” यही आयत अधिवेशन के मुख्य उद्देश्य—एकता, संयम और अधिकारों की रक्षा—का आधार बनी।

अधिवेशन की अध्यक्षता और मार्गदर्शक विचार

मौलाना सायम मेहदी का संबोधन

बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सायम मेहदी ने अधिवेशन की अध्यक्षता की और उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया। उन्होंने बोर्ड के गठन के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, उसकी आवश्यकता और वर्तमान समय में उसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने विशेष रूप से युवाओं से अपील करते हुए कहा कि:

  • अपने अधिकारों को समझें
  • सामाजिक न्याय के लिए आगे आएं
  • धर्म और शिक्षा दोनों में सक्रिय भूमिका निभाएं

उन्होंने बताया कि व्यक्तिगत कानून, धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए बोर्ड की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मौलाना यासूब अब्बास का महत्वपूर्ण वक्तव्य

खुतबा-ए-नहजुल बलाग़ा का संदर्भ

बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने अपने संबोधन में नहजुल बलाग़ा के खुतबा नंबर 46 का हवाला दिया, जिसमें हज़रत अली (अ.स.) का यह कथन उद्धृत किया गया:

“जिस दिन लोग अपने अधिकारों की लड़ाई छोड़ देंगे, उसी दिन से उन पर अत्याचार शुरू हो जाएगा।”

उन्होंने जोर देकर कहा कि:

  • अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना इबादत के समान है
  • चुप्पी अन्याय को मजबूत करती है
  • लोकतांत्रिक व्यवस्था में मांग रखना नागरिकों का अधिकार है

सरकार के सामने रखी गई प्रमुख मांगें

क्रम संख्या मांग का विषय संक्षिप्त विवरण
1 जन्नतुल बकी का पुनर्निर्माण सऊदी सरकार पर दबाव बनाकर जनाबे फातिमा ज़हरा (स.अ.) के रौज़े का पुनर्निर्माण
2 मॉब लिंचिंग कानून सख्त कानून और शिया समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सर्वे
3 UCC पर पुनर्विचार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने से पूर्व व्यापक चर्चा
4 वक्फ बोर्डों में भ्रष्टाचार की जांच विशेषकर यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की सुरक्षा
5 हुसैनाबाद ट्रस्ट सुधार ऐतिहासिक इमारतों की मरम्मत और भ्रष्टाचार पर अंकुश
6 हिजाब का अधिकार शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर रोक न लगाने की मांग

मांगों का सामाजिक और राष्ट्रीय महत्व

जन्नतुल बकी का पुनर्निर्माण

जन्नतुल बकी इस्लामिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्मारक है। जनाबे फातिमा ज़हरा (स.अ.) और अन्य पवित्र हस्तियों के रौज़े के पुनर्निर्माण की मांग न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है बल्कि यह विश्व विरासत और मानव सभ्यता की धरोहर के संरक्षण का भी प्रश्न है।

मॉब लिंचिंग के विरुद्ध सख्त कानून

देश में बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कड़े कानून की आवश्यकता पर बल दिया गया। साथ ही सच्चर कमेटी की तर्ज पर शिया समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सर्वे करने और अलग आरक्षण देने की मांग भी उठाई गई।

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर पुनर्विचार

अधिवेशन का मानना था कि UCC का मुद्दा धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत कानूनों से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसलिए इस पर व्यापक चर्चा, रायशुमारी और संवैधानिक मर्यादाओं के साथ पुनर्विचार आवश्यक है।

वक्फ और ट्रस्टों में पारदर्शिता की मांग

वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा

देश के विभिन्न शिया वक्फ बोर्डों, विशेषकर उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार, कीमती संपत्तियों की अवैध बिक्री और रखरखाव की अनदेखी जैसे आरोपों की निष्पक्ष जांच की मांग की गई। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और वक्फ संपत्तियों के संरक्षण हेतु विशेष कानून बनाने पर जोर दिया गया।

हुसैनाबाद ट्रस्ट की ऐतिहासिक इमारतें

लखनऊ की पहचान बन चुकी हुसैनाबाद की इमारतों की जर्जर होती स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई। अधिवेशन ने मांग की कि इमारतों की मरम्मत, उचित रखरखाव और भ्रष्टाचार पर अंकुश तुरंत सुनिश्चित किया जाए।

हिजाब के अधिकार का मुद्दा

अधिवेशन में कहा गया कि संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के तहत कौम की बेटियों को हिजाब पहनकर शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है। किसी भी शैक्षणिक संस्थान में इस अधिकार में बाधा नहीं डाली जानी चाहिए।

निष्कर्ष: एकजुटता और जागरूकता का संदेश

यह अधिवेशन केवल औपचारिक सभा नहीं था, बल्कि यह समुदाय की आवाज़, चिंताओं और सपनों का प्रतिनिधित्व था। ठंड के बावजूद देर रात तक लोगों का डटे रहना यह दर्शाता है कि समुदाय अपने अधिकारों के प्रति जागरूक है, सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर एकजुट है और राष्ट्र के लोकतांत्रिक ढांचे में रचनात्मक भूमिका निभाने को तैयार है।

बड़ा इमामबाड़ा इस ऐतिहासिक अधिवेशन का गवाह बना, जिसने एकता, न्याय और अधिकारों के लिए जागरूकता का संदेश दिया।

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