मोती झील मामले में हाईकोर्ट सख्त, धारा 67 के आदेश के बावजूद कार्रवाई न होने पर जताई नाराज़गी
संवाददाता अमन कुमार सज्जाद टाइम्स न्यूज़ लखनऊ
लखनऊ की ऐतिहासिक मोती झील पर हो रहे अतिक्रमण और उपेक्षा के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने धारा 67 के अंतर्गत पहले से पारित आदेशों का पालन न होने पर गहरी नाराज़गी जताई है। न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि धारा 67 के तहत कार्रवाई का आदेश पहले ही दिया जा चुका था, तो अब तक उस पर अमल क्यों नहीं हुआ?
यह मामला माननीय श्री सैय्यद अली हसनैन आब्दी, पर्यावरण एवं वन्य जीव संरक्षण वादी लखनऊ द्वारा दायर जनहित याचिका (Case No. WPIL-799/2025) से जुड़ा है, जिसकी प्रति में दर्ज विवरण के अनुसार याचिका पर 5 अगस्त 2025 को सुनवाई हुई है याचिका में माननीय अधिवक्ता श्री राजेश कुमार कश्यप ने बहस प्रस्तुत की, जिसमें मोती झील की वर्तमान स्थिति, उसके संरक्षण, सीमांकन और अतिक्रमण को लेकर गंभीर चिंता जताई गई है।
अदालत ने सुनवाई के दौरान जिलाधिकारी लखनऊ और प्रमुख सचिव, राजस्व विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार समेत पुलिस और एलडीए के वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे मोती झील की वर्तमान स्थिति और धारा 67 के अंतर्गत पूर्व आदेशों के अनुपालन का विस्तृत पॉइंट-वाइज़ काउंटर एफिडेविट प्रस्तुत करें। न्यायालय ने यह भी चेतावनी दी कि यदि धारा 67 के आदेशों के बावजूद जानबूझकर लापरवाही सामने आई, तो जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी।
📘 क्या है धारा 67?
धारा 67 – उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1959 के अंतर्गत:
नगर निगम को यह शक्ति देती है कि वह नगर निगम की सार्वजनिक संपत्तियों, जलाशयों, तालाबों, सड़कों या अन्य सार्वजनिक स्थलों पर हुए अवैध कब्जे या अतिक्रमण को नोटिस देकर हटवा सके।
यदि कब्जाधारी नोटिस के बाद भी अतिक्रमण नहीं हटाता, तो नगर निगम पुलिस बल की मदद से जबरन हटाने का अधिकार रखता है।
हटाने में आया खर्च अतिक्रमणकर्ता से राजस्व बकाया के रूप में वसूला जा सकता है।
इसका उद्देश्य नगर की सार्वजनिक संपत्तियों और पर्यावरणीय संसाधनों की रक्षा कर
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मोती झील का संरक्षण केवल जमीन का मामला नहीं, बल्कि पर्यावरण और भावी पीढ़ियों के लिए जल-संसाधन की सुरक्षा का विषय है। अदालत ने मामले में सभी संबंधित विभागों से गंभीरता से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई के लिए तारीख नियत की है।