*धार्मिक संकीर्णता: देश के विकास और सामाजिक समरसता में बाधक* मौलाना मेराज अहमद क़मर

उर्दू खबरे लखनऊ

 

भारत एक अरब से अधिक लोगों का देश है, जिनमें से अधिकांश हिंदू हैं। लेकिन हमारे देश में लगभग 150 मिलियन से ज्यादा मुसलमानों के साथ अल्पसंख्यकों की बड़ी आबादी भी है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय हम एकजुट होकर लड़े लेकिन आजादी के बाद आपसी संघर्ष के जो बीज अंग्रेजों के शासन के दौरान बोए गए थे, वे आज भी लोगों के मन में हैं। जिसे पूरी तरह से खत्म करने की जरूरत है। देश की वोट राजनीति भी इन दो समुदायों (हिंदू/मुस्लिम) को विभाजित करने के लिए समान रूप से जिम्मेदार है।
दोनों समुदायों के कुछ तथाकथित गैरजिम्मेदार नेताओं की हरकतें देश के सौहार्दपूर्ण माहौल को बिगाड़ने में लगी हुई हैं जो समय समय पर कुछ ऐसे विवादास्पद बयान जारी कर देते हैं जो देश की आपसी समरसता को छिन्न भिन्न कर देते है और इस प्रकार दोनों संप्रदाय के लोगों में कडुवाहट पैदा कर देते हैं। हाल ही में एक तरफ जहां कुछ हिंदू नेताओं ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण दिए हैं, वहीं मुसलमान नेता भी कोई विवादित बयान देने में पीछे नहीं हैं। वर्तमान में इस प्रकार की रस्साकसी का जो माहौल समाज में व्याप्त है उसकी बानगी कुछ इस प्रकार हैं।
हाल ही में मध्य प्रदेश में हिंदू महासभा के कुछ सदस्यों द्वारा भारत भर से मुस्लिम धर्मस्थलों को हटाने की धमकी देने वाले वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। दूसरा, वी एच पी/ बजरंग दल के कई कार्यकर्ताओं ने बांदा में कथित अवैध मस्जिद निर्माण के खिलाफ धरना दिया और नारेबाजी की। विरोध प्रदर्शन में बजरंग दल के कई कार्यकर्ता भी शामिल हुए।
एक अन्य प्रकरण में , आल इंडिया इमाम अस्सोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी का राम मंदिर विषय पर दिये गए बयांन ने विवाद खड़ा कर दिया है, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है ! मौलाना ने कहा है की 1992 में जब बाबरी मस्जिद तोड़ी गयी और उसके बाद वही पर राम मंदिर का शिलान्यास हुआ जिसने एक गलत परंपरा शुरू कर दी! अब आने वाले 50-100 सालो में जब देश में मुस्लिम शासन स्थापित होगा तो तब मुसलमान मंदिर तोड़कर फिर वहां पर मस्जिद बनवा देंगे !
भारत में सांप्रदायिकता पर इस तरह की अभद्र भाषा के विवाद बहुत आम हैं।

हाल के दशकों में, धार्मिक समुदायों (भारत में सांप्रदायिकता के रूप में संदर्भित) के बीच संघर्ष काफी बढ़ गया है और इन धार्मिक संघर्षों में हजारों लोग मारे गए हैं। अगर धार्मिक संघर्षों ने लोकतांत्रिक ताने-बाने को तोड़ दिया और गृहयुद्ध की स्थिति पैदा कर दी तो भारत का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।

इस स्थिति से बचने के लिए देश के सभी नागरिकों , चाहे वह किसी भी धर्म से ताल्लुक रखता हो, की नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है कि वह अपनी धार्मिक संकीर्णता से ऊपर उठकर और धर्मनिरपेक्षता की भावनाओं की कद्र करते हुए देश की एकता और अखंडता को बरकरार रखते हुए अमन चाय का माहौल कायम करे।तभी हम विश्व पटल पर एक अखण्ड राष्ट्र के रूप में शान से फल-फूल सकते हैं।

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