जालियांवाला की वेदना एवं महामना पं.मदन मोहन मालवीय-
आज का दुखद दिन था, 13 अप्रैल 1919 । दुष्ट जनरल डायर की गोलियों ने 1000 से ज्यादा हमारे निहत्थे शांतिप्रिय भाई, बहनों को मौत की गोद सुला दिया। 1500 से ज्यादा घायल हुये। कौन भूल सकता है इस भयंकर वेदना को। नासूर की तरह सालती हैं।
13 साल के भगत सिंह के मन में विद्रोह की ज्वाला धधक उठी। उस खून से रंगी जालियावाला की मिटटी को बोतल में भर घर ले आये। वीर सावरकर के मानसपुत्र उधम सिंह ने बदले का प्रण लिया। लंदन में जाकर होटलों में बर्तन धोये।और एक दिन उस दुष्ट का काम तमाम कर अपना प्रण पूरा किया।
इतने बड़े भयावह कांड के बाद पंडित मदन मोहन मालवीय सामने आये। वो अमृतसर गये।लेकिन लोगों ने डर के मारे उनको अपने घरों में जगह नही दी।किन्तु उन्होंने हिम्मत नही हारी। जालियांवाला बाग के पास एक पेड़ के नीचे बैठ कर उन्होंने रिपोर्ट तैयार की।तथा उस समय की लेजिस्लेटिव कौंसिल में 3 दिन लगातार उनका भाषण इस कांड के विरोध में हुआ।अपने तर्कों से उन्होंने अंग्रेजी सरकार को तार तार कर दिया। लोगों की आँखों में आंसू आ गये।तत्कालीन गृहमंत्री बिसेन्ट स्मिथ की पत्नी कहते सुनी गई कि मेरे पति पण्डित जी का मुकाबला नही कर सकते। मालवीय जी ने अंग्रेजों के दमनचक्र की ऐसी नकाब उतारी कि उसकी गूंज लंदन तक गयी।साथ ही सारे देश में विद्रोह एवं आजादी की ज्वाला और भी तेज हो गयी।
1922 के चौरी चौरा काण्ड का भी यहां उल्लेख करूँ तो पता लगेगा मालवीय जी का योगदान कितना बड़ा था। इस कांड में 170 क्रांतिकारियों को मौत की सजा हुई थी। यहां सबसे दुखद ये था कि कांग्रेस ने किसी को भी इन क्रांतिकारियों का साथ देने के लिये मना कर दिया था। अब लोग कहाँ जायें? कौन बचायेगा इन गरीब युवा देश भक्तों को?
हार कर लोग मालवीय जी के पास आये। मालवीय जी उन दिनों अपनी वकालत छोड़ कर पूरी तरह देश सेवा में लग चुके थे। उन्होंने इन क्रांतिकारियों को बचाने का निर्णय किया। किन्तु अब समस्या कांग्रेस की उस आपत्ति की थी जिसमे किसी को भी इनका केस लड़ने से मना किया गया था।निर्णय न मानने पर कांग्रेस से निष्कासन तय था।
मालवीय जी कांग्रेस के बड़े नेता थे। तब तक 2 बार राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके थे। किन्तु उन्होंने इसकी तनिक भी परवाह नही की। खुद ही कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया तथा इनका केस लड़ने हेतु वर्षों पहले छोड़ी वकालत का पुनः अध्ययन किया और 170 में से 151 क्रंतिकारियों को फांसी के फंदे से छुड़ा लाये। बाकी की सजा भी काफी कम हो गईं।
यहां ध्यान देने की बात ये है कि कोर्ट रूम में मालवीय जी को सुनने बहुत भीड़ हो गईं। मालवीय जी जब अपने तर्कों से बहस कर रहे थे तो इलाहाबाद हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सर ग्रीमउड मिर्स इतने प्रभावित हुये कि वो अपनी कुर्सी से तीन बार उठे और मालवीय जी की ओर सर झुका कर अभिवादन किया।
कुछ वर्ष पहले जब इलाहाबाद हाई कोर्ट की शताब्दी मनायी जा रही थी तो समाचार पत्रों में इस सम्बन्ध में विस्तृत लेख भी आये थे।
अंत में एक बात अपने से-
हम महामना के मानस पुत्र क्या उस युग पुरुष के संदेश को समझ पाये हैं? क्या वर्तमान चुनौतियों के सन्दर्भ में हम उनके दिखाये रास्ते का स्मरण कर रहे हैं। यह हमको सोचना है।
अमर बलिदानियों की पुण्य स्मृति में शत शत नमन।