सज्जाद टाइम्स न्यूज
महात्मा फुले जी का पूरा नाम महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले था जिनका जन्म 11अप्रैल 1827को पुणे में हुआ उनके पिता का नाम गोविंदराव फुले तथा माता विमला बाई थी l
उनका परिवार सब्जियां और फूल उगाता और बेचता था। वे शूद्र सामाजिक वर्ग के भीतर माली जाति के थे।
पूरा देश 11 अप्रैल महात्मा ज्योतिबा फुले जयंती के रूप में बड़े धूमधाम से मनाते है ।
स्त्री शिक्षा छुआछूत और किसानों के लिए संपूर्ण जीवन का समर्पण करने वाले महापुरुष तथा सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा ज्योतिबा फुले जी महान समाजसेवी, विचारक, दार्शनिक व लेखक थे और गरीबों, दलितों, वंचितों के उत्थान एवं समाज में व्याप्त कुरीतियों से मुक्ति के लिये उनके संदेश व कार्य हमारे लिए सदा प्रेरणीय रहेंगे
महात्मा ज्योतिबा फुले ने गरीबों एवं पिछड़ों के सामाजिक तथा आर्थिक उत्थान के लिये जीवनभर संघर्ष किया।
ऐसे ही महापुरुषों से सीख ले कर समाज सेवी आदिल खान (चंबल वाले गुरु जी) लगभाग 50 बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का काम कर रहे हैंl
महात्मा फुले ने समाज को आगे बढ़ाने के लिये छूआछूत, जातिप्रथा एवं पर्दाप्रथा जैसी कुरीतियों के विरूद्ध संगठित एवं शिक्षित समाज की स्थापना की।
ज्योतिबा फुले जी ने महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिए कई कार्य किए। दलितों के प्रति भेद-भाव समाप्त कर उन्हें समाज में स्थान दिलाने के लिए महात्मा फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की।
उन्होंने न सिर्फ महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया, बल्कि अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले जी को भी शिक्षा दिलाई जिससे वे भारत की पहली अध्यापिका बनीं।
महात्मा फुले समाज को अंधविश्वास और कुप्रथाओं से मुक्त करना चाहते थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति व्यवस्था और उस पर आधारित भेदभाव के प्रबल विरोधी थे। उन्होंने समाज को कुरीतियों से मुक्ति दिलाने के लिए सभी वर्गों की शिक्षा पर बल दिया।
1888 में जब ज्योतिबा फुले को ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित | किया गया तो उन्होंने कहा- “मुझे ‘महात्मा’ कहकर मेरे संघर्ष को । पूर्णविराम मत दीजिए। जब व्यक्त्ति मठाधीश बन जाता है तब यह । संघर्ष नहीं कर सकता। इसलिए आप सब साधारण जन ही रहने दें, मुझे अपने बीच से अलग न करें। महात्मा ज्योतिबा फुले की । सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे जो कहते थे, उसे अपने । आचरण और व्यवहार में उतारकर दिखाते थे। इस दिशा में अग्रसर उनका पहला कदम था- अपनी पत्नी सावित्री बाई को । शिक्षित करना। ज्योतिबा ने उन्हें मराठी भाषा ही नहीं, अंग्रेजी लिखना-पढ़ना और बोलना भी सिखाया।
स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1848 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया।
कुछ लोगों ने आरम्भ से ही उनके काम में बाधा डालने की कोशिश की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका जरूर , पर उसके तुरंत बाद ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन विद्यालय खोल दिएl
समाज के लिए कार्य करते करते अपना पूरा जीवन समाज समर्पित कर दिया l
महात्मा फुले जी ने 28 नवम्बर 1890 (उम्र 63)
पुणे,में अंतिम सांस ली l
हमें उनके अदर्शों पर चल कर समाज को सुधारने के लिए ताकत का एहसास होता है उनके अदर्शों को अपने जीवन में उतारना ही अपने जीवन को सफल बनाने के समान है