जमाल मिर्ज़ा
सज्जाद टाइम्स न्यूज़
तंजीम अली कांग्रेस की एक मीटिंग आज लखनऊ में हुई जिसमे सवीडन में हुयी क़ुरान करीम की बेहुरमती की कढ़ी निंदा की गयी।मीटिंग में गुफ़्तगू का अहम मुद्दा यूनिफॉर्म सिविल कोड भी रहा।
मिंबारान ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का सिर्फ नाम सुनकर इसकी हिमायत करने वाले आखि़र किस बात की हिमायत कर रहे हैं और मुख़ालिफ़त करने वाले आखि़र किस बात की मुखालिफ़त कर रहे हैं जबकि हमारे सामने इसका कोई मसवदा/ रूपरेखा मौजूद ही नहीं है। इन मुखालिफ़ीन और हिमायतीयों दोनों से अगर यह सवाल किया जाए कि हिंदुस्तान में कितनी अक़वाम और कितने क़बीले राइज हैं और क्या उन सभी के रीति-रिवाजों/ तौर तरीको़/ दस्तूर को एक यूनिफॉर्म सिविल कोड के अंदर लाया जा सकता है? तो शायद इस सवाल का जवाब इनके पास नहीं होगा लेकिन इसके बावजूद मुख़ालिफ़त और हिमायत दोनों ही अपने अपने उरूज पर हैं।
तंज़ीम की सदर रूबीना मुर्तज़ा ने कहा यूनिफॉर्म सिविल कोड सिर्फ मुसलमानों का मसला नहीं है , जब तक यह तहरीर की शक्ल में ना आ जाए उस वक्त तक इसकी हिमायत और मुख़ालिफत दोनों ही फ़जूल हैं, इस पर जिस तरह की बहस और मुबाहिसे किए जा रहें हैं वह उसी मंसूबे और मसलेहत को तक़वीयत फ़राहम कर रहे हैं जिसके तहत यह शोशा छोड़ा गया है। इसलिए बेहतर होगा कि मुसलमान इसकी मुखालिफ़त उस वक्त तक ना करें जब तक के इसका मसविदा सामने न हो और यह उनके या किसी और के हक़ूक के ख़िलाफ़ न हो। इसी के साथ-साथ मुल्क के तमाम बाशिंदों को भी यह बात समझना चाहिए के देश के संविधान में डायरेक्टिव प्रिंसिपल की शक्ल में आर्टिकल 44 में जो यूनीफ्रॉम सिविल कोड की बात की गई है वह मुल्क से डिस्क्रिमिनेशन /भेदभाव/ गै़र बराबरी को ख़त्म करने और इंसानी समाज की बेहतरी के लिए है, ना कि किसी दूसरी कौ़म के लोगों के हक़ूक़ छीन लेने या उसे कमतर दिखाने के लिए। याद रहे कि इनहीं डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स में राइट टू एजुकेशन, सबके लिए फ्री लीगल एड/ मुफ्त कानूनी इमदाद, न्यायपालिका का कार्यपालिका से अलग किया जाना और अर्थव्यवस्था की बेहतरी और धन के सकेंद्रियकरण को रोकना भी शामिल है। हमारे यहाँ धन के सकेंद्रियकरण की स्थिति में ग़ैर बराबरी का आलम यह है के ऑक्सफैम की रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत के 1 परसेंट लोगों के पास यहां की संपत्ति के 40% से ज़्यादा पर अधिकार है। पहले इन पर काम किया जाना ज़्यादा अहम है क्योंकि यह वक़्त की ज़रूरत भी है। इसके बाद अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बात की जाए तो शायद ज़्यादा बेहतर होगा। देश के ज़यादातर सभी क़ानून सभी क़ानून सभी देशवासियों के लिए समान ही है, काग़ज़ पर नये क़ानून बनाने के बजाय ज़मीन पर पहले से बने हुए क़ानूनों का नफ़ाज़ ज़रूरी है।
हुसैन रिज़वी एडवोकेट, रेहान अंसारी एडवोकेट, बहार अख़तर रिज़वी एडवोकेट भी मीटिंग में मौजूद थे, इन लोगों ने भी इस बयान से सहमति जताई और अपने सुझाव दिये।
आखिर में तंज़ीम अली कांग्रेस के उन सभी मिमबरान के लिए जो इस दुनिया से रुख़सत हो चुके हैं सूरह फातिहा की तिलावत की गई।