*जंग के साये में: हमास के हमले के बीच अमन की तलाश*

उर्दू खबरे

मौलाना मेराज अहमद क़मर

हमास और इजरायल के बीच हाल ही में बड़े जद्दोजहद की गूंज दुनिया भर में सुनाई दे रही है। कई मुल्क और अंतरराष्ट्रीय संगठन हमास द्वारा किए गए हमले की वजह से सदमे में है। हमास के इस तेज और आक्रामक हमले से पूरी दुनिया में खौफ का माहौल बन गया हैI

इस हमले का मुख्य किरदार हमास है जोकि 1987 में स्थापित एक समूह है जिसकी जड़ें मुस्लिम ब्रदरहुड की फिलिस्तीन शाखा में है। हमास जोकि फिलिस्तीन राज्य का पैरोकार है, वो PLO और इजरायल के बीच हुए किसी भी समझौते का जोरदार विरोध करता रहा है। हमास का ताजा हमला इजराइल में व्यापक विनाश और जान माल के नुकसान का कारण बना है। ईरान का रवैया पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण है। इस हमले ने अंतरराष्ट्रीय संगठनों विशेषकर यूएन के त्वरित दखल की जरूरत को बढ़ा दिया है। यू एन ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है तथा उसने आधिकारिक मान्यता नहीं दी है।
इस लड़ाई में फलीस्तीन में बच्चे औरतें और बूढ़े लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। लगभग 1350 इजराइली और 7000 फलस्तीनी नागरिक मारे जा चुके हैं ऐसे में वैश्विक समुदाय के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह दोनों गुटों को बात-चीत के माध्यम से मामले को हल करने को मजबूर करे और इस लड़ाई को तुरंत बंद करवाए। इस्लाम में मानव जीवन को महत्वपूर्ण माना गया है इसके साथ ही किसी भी मासूम के प्रति हिंसा की सख्त मनाही है।
हमास और इजराइल दोनों धर्म के रास्ते के मूलभूत सिद्धांतों से भटके हुए हैं जिस से फलस्तीन और इजराइल को समय-समय पर भारी नुकसान उठाना पड़ता है, जिससे मुसलमानों और यहूदियों दोनों की ही छवि विश्व स्तर पर खराब हो रही है। क़ुरआन मानव जीवन के मूल्य पर जोर देता है, इस्लाम का उद्देश्य इंसानो को नुकसान पहुंचाने की बजाय उनके जीवन को संरक्षित करने के महत्व पर जोर देता है। फिलिस्तीनी और इजरायली नागरिक दोनों को ही सुरक्षा और शांति का अधिकार है। उन्हें चरमपंथ की आग में नहीं झोंका जाना चाहिए। इस्लाम की शांति पूर्ण शिक्षाओं का पालन करने सेही क्षेत्र में समाधान और सह-अस्तित्व की दिशा में मार्ग प्रशस्त हो गा।
फिलिस्तीन इजरायल के बीच चल रहे युद्ध को ध्यान में रखते हुए और हमास के द्वारा इजराइल पर किए गए हमले और उसके बाद निहत्थे नागरिकों की हत्या की, कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए। यह लड़ाई तुरंत रुकनी चाहिए। विश्व के ज्यादातर नेता और भारतीय प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्रालय ने भी इस बात पर जोर दिया है कि यह शांति का युग है, युद्ध का नहीं। इस समस्या का समाधान हथियारों से नहीं बल्कि बातचीत से ही संभव है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों और देशों के द्वारा इस लड़ाई में एक तत्काल और निर्णायक हस्तक्षेप, न सिर्फ लाज़मी है बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी है जिससे इस हिंसा से वहां के लोगों को बचाया जा सके।

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